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ग्रामीण विकास

 ग्रामीण विकास अन्य सम्बन्धित शीर्षक-  भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान किसान  भारतीय कृषि, ग्रामीण विकास: भारतीय परिप्रेक्ष्य में  ग्रामोत्थान की नवीन योजनाएँ  भारत का कृषि के क्षेत्र में विकास व पिछड़ापन।   प्रस्तावना,  . कृषकों की सामाजिक समस्याएँ,  . आर्थिक समस्याएँ,  . गाँवो की वर्तमान स्थिति,  . भारत में कृषि की स्थिति,  . भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान,  . गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएँ,  . राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक,  . कृषि अनुसंधान और शिक्षा,  . बागवानी,  . फसलों के मौसम,  . उद्योगों के विकास में कृषि का योगदा न,  . उपसंहार   प्रस्तावना- भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में निवास करती है। यह कहना भी सर्वया उचित ही प्रतीत होता है कि ग्राम ही भारत की आत्मा है. लेकिन रोजगार और अन्य सुविधाओं के कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ग्रामीणों के इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को गाँवों के विकास की ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा इससे कृषि उत्पादन भ...

पंचायती राज ( panchayt Raj )

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  पंचायती राज अन्य सम्बन्धित शीर्षक पंचायती राज व्यवस्था के लाभ रूपरेखा   1) प्रस्तावना,  1) भारत में पंचायती राज का महत्व   3) पंचायती राज व्यवस्था का वर्तमान स्वरूप —  (i) ग्राम सभा, (ii) ग्राम पंचायत,  (iii) न्याय पंचायत  4) पंचायतों के कार्य-  (i) लोक-सेवा सम्बन्धी  (ii) शासन सम्बन्धी कार्य,  () न्याय सम्बन्धी कार्य,  5) पंचायतों की आय के साधन,  6) पंचायतों की असफलता कारण,  7) उपसंहार।   प्रस्तावना – स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात् सता के विकेन्द्रीकरण के लिए भारत के विभिन्न राज्यों में गाँवों के स्थानीय स्वशासन को त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई। इसका प्रारम्भ सन् १९५९ में बलवन्त राय मेहता समिति के प्रतिवेद कार्य के आधार पर किया गया था। इस सन्दर्भ में संविधान अधिनियम १२ द्वारा इन्हें संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई है। व्यवस्था के अन्तर्गत गाँवों और जिलो के स्थानीय स्वशासन की प्राचीन एवं परम्परागत संस्थाओं को पुनः संगठित किया गया। पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष तय किया गया। पंचायती राज का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण स्वश...

विज्ञान वरदान या अभिशाप

  विज्ञान वरदान या अभिशाप अन्य सम्बन्धित शीर्षक विज्ञान का सदुपयोग, विज्ञान के लाभ और हानियाँ, विज्ञान और मानव-कल्याण, विज्ञान के वरदान विज्ञान वरदान भी, अभिशाप भी, वरदान या अभिशाप रूपरेखा -   प्रस्तावना,  विज्ञान वरदान के रूप में—  परिवहन के क्षेत्र में,  संचार के क्षेत्र में,  चिकित्सा के क्षेत्र में,  खाद्यान्न के क्षेत्र में,   उद्योगों के क्षेत्र में,  दैनिक जीवन में, विज्ञान एक अभिशाप के रूप में,  विज्ञान वरदान या अभिशाप उपसंहार। प्रस्तावना -  यद्यपि इस पृथ्वी पर मनुष्य को उत्पन्न हुए लाखों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, किन्तु वास्तविक वैज्ञानिक उन्नति पिछले दो-सौ वर्षों में ही हुई है। साहित्य में विमानों और दिव्यास्त्रों के कवित्वमय उल्लेख के अतिरिक्त कोई ऐसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, जिनके आधार पर यह सिद्ध हो सके कि प्राचीनकाल में इस प्रकार की वैज्ञानिक उन्नति हुई थी। एक समय था, जब मनुष्य सृष्टि की प्रत्येक वस्तु को कौतूहलपूर्ण व आश्चर्यजनक समझता था तथा उनसे भयभीत होकर ईश्वर की प्रार्थना करता था, किन्तु आज विज्ञान ने प्रक...

प्रदूषण समस्या और समाधान

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प्रदूषण समस्या और समाधान अन्य सम्बन्धित शीर्षक बढ़ता प्रदूषण और उसके कारण पर्यावरण प्रदूषण  बढ़ता प्रदूषण और पर्यावरण  पर्यावरण संरक्षण   प्रदूषण के दुष्परिणाम पर्यावरण प्रदूषण कारण एवं निदान (निवारण)  औद्योगिक प्रदूषण समस्या और समाधान  पर्यावरण की उपयोगिता  पर्यावरण और मानव  "आज हमारा वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो चुका है, जिसकी वजह से मानव का जीवन खतरे में आ गया है। आज यूरोप के कई देशों में प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है, जिसके कारण वहाँ कभी-कभी अम्ल-मिश्रित वर्षा होती है। ओस की बूंदों में भी अम्ल मिला रहता है। यदि समय रहते हुए हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो एक दिन वि संकट छा जाएगा।" 'खनन भारती' से उदयत रूपरेखा -  (1) प्रस्तावना,  (2) प्रदूषण का अर्थ,  (3) विभिन्न प्रकार के प्रदूषण–  (क) वायु प्रदूषण, (ख) जल प्रदूषण,  (ग) रेडियोधर्मी प्रदूषण,  (घ) ध्वनि-प्रदूषण,  (ङ) रासायनिक प्रदूषण,  (4) प्रदूषण पर नियन्त्रण,  (5) उपसंहार   प्रस्तावना- चौदहवीं शताब्दी में मुहम्मद तुगलक के जीवनकाल में इस्लामी दुनिया ...

इक्कीसवीं सदी का भारत

  इक्कीसवीं सदी का भारत अन्य सम्बन्धित शीर्षक इक्कीसवीं सदी में विकास के स्वप्न  • इक्कीसवीं शताब्दी  पिछले पचास वर्षो में भारत ने खाद्य उत्पादन, स्वास्थ्य, आधारभूत ढाँचा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की हैं। तमाम संसाधनों के बावजूद इक्कीसवी शताब्दी के इस प्रारम्भिक दशक में लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। उन्हें गरीबी से मुक्त करने और स्वस्थ तथा साक्षर बनाने की आवश्यकता है। देश की एक अरब जनता भारत को समृद्ध व महाशक्ति बनाने के मेरे स्वप्न को जनआंदोलन का रूप देकर सफल बना सकती है। हमारी यह इक्कीसवीं सदी पूर्ण गरीबी उन्मूलन के लिए कृत संकल्प होनी चाहिए। रूपरेखा –  1 प्रस्तावना,  2) परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम,  3) परिवर्तनशील भारत,  4) इक्कीसवीं सदी और भारत,  5) इक्कीसवीं सदी और हमारी तैयारी,  6) विकास की आशाएँ -  (क) कृषि के क्षेत्र में,  (ख) औद्योगिक क्षेत्र में,  7) उपसंहार  प्रस्तावना -   लगभग 25 वर्ष पूर्व अंग्रेजी साहित्य के लेखक ने एक बहुत रोचक लेख लिखा था, जिसक...

व्यावसायिक शिक्षा

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  व्यावसायिक शिक्षा अन्य सम्बन्धित शीर्षक शिक्षा और रोजगार, रोजगारपरक शिक्षा। रूपरेखा –  1 ) प्रस्तावना,  2) व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता,  3) व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य —  (क) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास,  (ख) जीवन को तैयारी,  (ग) ज्ञान का जीवन से सहसम्बन्ध,  (घ) व्यावसायिक एवं आर्थिक विकास, (ङ) राष्ट्रीय विकास और व्यावसायिक शिक्षा, च) शिक्षा का व्यवसायीकरण,  4) व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन-  i) पूर्णकालिक नियमित व्यावसायिक शिक्षा,  ii) अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा,  (iii) अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा व्यावसायिक शिक्षा,  (iv) पत्राचार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा,  5) उपसंहार। प्रस्तावना -  अर्थव्यवस्था किसी भी समाज के विकास की संरचना में महत्त्वपूर्ण होती है। समाजरूपी शरीर का मेरुदण्ड उसकी अर्थव्यवस्था को ही समझा जाता है। समाज की अर्थव्यवस्था उसके व्यावसायिक विकास पर निर्भर करती है। जिस समाज में व्यवसाय का विकास नहीं होता, वह सदैव आर्थिक परेशानियों में घिरा रहता है। व्यावसायिक शिक्षा इसी व्यवसाय सम्बन्धी तकनीकी, वैज्ञ...

नई शिक्षा नीति

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नई शिक्षा नीति अन्य सम्बन्धित शीर्षक-  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण एवं दोष  . हमारी शिक्षा कैसी "नयी शिक्षा नीति,  .एक गतिशील और ओजस्वी राष्ट्र के रूप में २१वीं शताब्दी में प्रवेश करने की हमारी हो?  • दोहरी शिक्षा पद्धति। आवश्यकताओं के अनुकूल है। आशा है कि इसके कार्यान्वयन के लिए राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक इच्छाशक्ि उपलब्ध हो सकेगी।' रूपरेखा   1) प्रस्तावना,  2) नई शिक्षा नीति की आवश्यकता,  (3) राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था,  (4) विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन  (क) प्रारम्भिक शिक्षा,  (ख) माध्यमिक शिक्षा,  (ग) गति-निर्धारक स्कूल,  (घ) शिक्षा का व्यवसायीकरण,  (ङ) उच्च शिक्षा,  (च) खुला विश्वविद्यालय,  (छ) डिग्रियों का नौकरियों से पृथक्करण,  (ज) ग्रामीण विश्वविद्यालय,  (5) उपसंहार।  प्रस्तावना - शिक्षा हमारी अनुभूति और संवेदनशीलता को विकसित करती है। यह हमारे शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास का सर्वप्रमुख साधन है। वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास तथा राष्ट्रीयता व अन्तर्राष्ट्रीयता पर आधारित भावनाओ...