नई शिक्षा नीति

नई शिक्षा नीति

अन्य सम्बन्धित शीर्षक-

 • वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण एवं दोष 

. हमारी शिक्षा कैसी "नयी शिक्षा नीति,

 .एक गतिशील और ओजस्वी राष्ट्र के रूप में २१वीं शताब्दी में प्रवेश करने की हमारी हो? 

• दोहरी शिक्षा पद्धति। आवश्यकताओं के अनुकूल है। आशा है कि इसके कार्यान्वयन के लिए राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक इच्छाशक्ि उपलब्ध हो सकेगी।'



रूपरेखा 

1) प्रस्तावना, 
2) नई शिक्षा नीति की आवश्यकता, 
(3) राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था, 
(4) विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन 

(क) प्रारम्भिक शिक्षा, 

(ख) माध्यमिक शिक्षा, 

(ग) गति-निर्धारक स्कूल, 

(घ) शिक्षा का व्यवसायीकरण, 

(ङ) उच्च शिक्षा, 

(च) खुला विश्वविद्यालय, 

(छ) डिग्रियों का नौकरियों से पृथक्करण, 

(ज) ग्रामीण विश्वविद्यालय, 

(5) उपसंहार। 

प्रस्तावना-

शिक्षा हमारी अनुभूति और संवेदनशीलता को विकसित करती है। यह हमारे शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास का सर्वप्रमुख साधन है। वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास तथा राष्ट्रीयता व अन्तर्राष्ट्रीयता पर आधारित भावनाओं का विकास करने की दृष्टि से भी शिक्षा की प्रक्रिया ही सर्वाधिक सहायक है। शिक्षा के आधार पर ही अनुसन्धान और विकास को बल मिलता है। इस प्रकार शिक्षा वर्तमान तथा भविष्य के निर्माण का अनुपम साधन है। शिक्षा नीति की आवश्यकता - भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिसमें परम्परागत आदर्श समाप्त होते प्रतीत हो रहे हैं और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र तथा कर्मशीलता के लक्ष्यों की प्राप्ति में निरन्तर बाधाएँ आ रही है। गाँवों की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पढ़े-लिखे युवक शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

. जनसंख्या-सन्तुलन के लिए महिलाओं को शिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। नई पीढ़ी के लिए यह भी आवश्यक है कि वह नए विचारों को ग्रहण कर नव-निर्माण को दिशा में अपना योगदान दे; अतः नई चुनौतियों और सामाजिक अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए देश में नई शिक्षा नीति को लागू करना नितान्त आवश्यक है।


राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था – नवीन राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था के अनुसार सम्पूर्ण देश में एक प्रकार की शैक्षिक संरचना के अन्तर्गत 1०+2+3 के ढाँचे को स्वीकार कर लिया गया है। इस ढाँचे के पहले दस वर्षों का विभाजन इस प्रकार है— पाँच वर्ष का प्राथमिक स्तर, तीन वर्ष का उच्च प्राथमिक स्तर तथा दो वर्ष का हाईस्कूल। प्रत्येक स्तर पर दी जानेवाली शिक्षा का न्यूनतम स्तर तय किया गया है तथा ऐसे उपाय भी किए गए है कि छात्र देश के विभिन्न भागों में रहनेवाले लोगों की संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को समझ सकें। विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन-नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का विभिन्न स्तरों पर पुनर्गठन


किया गया है, जिसका विवरण इस प्रकार है— (क) प्रारम्भिक शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा की पहली आवश्यकता है कि बच्चों को सहज और स्वाभाविक ढंग से ज्ञान प्रदान किया जाए। जैसे-जैसे बच्चे की अवस्था में वृद्धि हो, उसे प्रारम्भिक स्तर के लिए अपेक्षित ज्ञान की बातें बताई जाएँ और नई जानकारी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाए, जिससे अभ्यास के साथ उसकी दक्षता भी बढ़ती जाए।

प्राथमिक स्तर पर उचित यही होगा कि बच्चों को किसी भी कक्षा में अनुत्तीर्ण न किया जाए। जहाँ तक सम्भव हो; अंकों के आधार पर मूल्यांकन न किया जाए। शिक्षा-पद्धति के अन्तर्गत शारीरिक दण्ड पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए। स्कूल का समय और यहाँ तक कि छुट्टियाँ भी बच्चों की सुविधा के अनुसार तय की जानी चाहिए।

ख) माध्यमिक शिक्षा यह वह मंजिल है जहाँ पर छात्रों को विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञानों की आधारभूत जानकारियों से परिचित कराया जाना चाहिए। माध्यमिक अथवा सेकण्ड्री स्तर के छात्रों को राष्ट्रीय परिवेश और इतिहास की जानकारी भी होनी चाहिए। उन्हें संवैधानिक कर्तव्यों और नागरिक अधिकारों का समुचित ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए। नवीन शिक्षा नीति के अन्तर्गत इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक अधिकाधिक सेकण्ड्री स्कूल उन क्षेत्रों में खोले जाएंगे, जहाँ अभी तक ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो सकी हैं।


(ग) गति-निर्धारक स्कूल – कुछ बच्चे अपनी अवस्था की अपेक्षा अधिक प्रतिभाशाली होते हैं। उन्हें अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराकर तेजी से आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। इस उद्देश्य से देश के विभिन्न भागों में

गति-निर्धारक स्कूलों की स्थापना की जाएगी।


(घ) शिक्षा का व्यवसायीकरण - व्यावसायिक शिक्षा का आशय छात्रों को विभिन्न व्यवसायों के लिए तैयार करना है। ये पाठ्यक्रम सामान्यतः माध्यमिक स्तर के बाद उपलब्ध किए जाएँगे। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों से सम्बन्धित स्नातकों को पूर्वनिर्धारित शर्तों के अन्तर्गत व्यावसायिक विकास, वृत्ति का सुधार और बाद में समुचित सेतु पाठ्यक्रमों के माध्यम से सामान्य, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाएगा।


(ङ) उच्च शिक्षा - शिक्षा लोगों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक समस्याओं के सम्बन्ध में चिन्तन करने का अवसर प्रदान करती है। शिक्षा के माध्यम से प्राप्त विशिष्ट ज्ञान और दक्षता के विकास द्वारा राष्ट्रीय प्रगति की सम्भावनाएं बलवती होती है। आज भारत में लगभग 150 विश्वविद्यालय और लगभग 5000 कॉलेज हैं। सम्बद्ध कॉलेजों के साथ-साथ स्वायत्त कॉलेजो को भी विकसित किया जा रहा है तथा विश्वविद्यालयों में भी स्वायत्त विभागों के सृजन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा परिषदों के माध्यम से उच्च शिक्षा का राज्यस्तरीय आयोजन औरस मन्वय किया जाएगा। शैक्षिक स्तरों पर निगरानी रखने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अन्य परिषदे समन्वय पद्धतियां विकसित करेंगी।

विश्वविद्यालयों को उच्चस्तरीय अनुसन्धान के लिए अधिक सहायता प्रदान की जाएगी और अनुसन्धान स्तर को सुनिश्चित करने के लिए विशेष कदम उठाए जाएँगे। भारतीय विद्या, मानविकी और सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र के अनुसन्धानकर्त्ताओं को पर्याप्त सहायता दी जाएगी। इसके अतिरिक्त भारत के प्राचीन ज्ञान भण्डार को खोजने और इसे समकालीन वास्तविकता से जोड़ने के प्रयास भी किए जाएंगे।


(च) खुला विश्वविद्यालय- नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत खुला विश्वविद्यालय प्रणाली शुरू की गई है,

जिससे उन व्यक्तियों को भी उच्चशिक्षा प्राप्त करने के अधिक-से-अधिक अवसर मिल सकें, जो किन्हीं कारणों से

औपचारिक शिक्षा से वंचित रह गए हैं। इस प्रकार शिक्षा को लोकतान्त्रिक साधनों से सम्पन्न बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।


(छ) डिग्रियों का नौकरियों से पृथक्करण कुछ चुने हुए क्षेत्रों में डिप्रियों को नौकरियों से अलग करने के उद्देश्य से अपेक्षित कार्यवाही आरम्भ की जाएगी। उन सेवाओं में डिग्री के महत्त्व को कम किया जाएगा, जिनके लिए विश्वविद्यालय की डिग्री अपेक्षित योग्यता के रूप में आवश्यक नहीं है। इस प्रकार उन उम्मीदवारों को अधिक न्याय मिल सकेगा, जो निर्धारित नौकरी के योग्य होने पर भी मात्र डिग्री न होने के कारण नौकरी प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं। डिग्रियों की आवश्यकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय परीक्षण सेवा जैसी उपयुक्त व्यवस्था कुछ चरणों में लागू की जाएगी। इस प्रकार नौकरियाँ डिग्री के आधार पर नहीं, वरन् राष्ट्रीय परीक्षण के आधार पर प्रदान की जा सकेगी।


(ज) ग्रामीण विश्वविद्यालय- महात्मा गांधी के शिक्षा सम्बन्धी विचारों के आधार पर ग्रामीण विश्वविद्यालयों को विकसित किया जाएगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी परिवर्तन के लिए आवश्यक नवीन चुनौतियों का सामना किया जा सके।


उपसंहार — देश ने नवीन शिक्षा पद्धति में असीम विश्वास व्यक्त किया है, लेकिन यह पद्धति सुनियोजित व्यवस्था, साधन-सम्पन्नता और लगन की मांग करती है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक स्तर पर शिक्षक अपनी पूरी योग्यता के साथ शिक्षण कार्य में लगे और छात्र पूरे मन से शिक्षा ग्रहण करें। इस सम्बन्ध में नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत यह निश्चय किया गया है कि शिक्षकों को बेहतर सुविधाएँ दी जाएँ और साथ ही उनके उत्तरदायित्वों में भी वृद्धि की जाए। इसके साथ ही छात्र सेवाओं को उत्तम बनाया जाए तथा थोड़े-थोड़े समय बाद संस्थाओं की कार्यशैली की समीक्षा भी की जाए।

भारत में शिक्षा का भावी स्वरूप इतना जटिल है कि उसका ठीक-ठीक अनुमान लगा पाना सम्भव नहीं है; फिर भी यह निश्चित है कि हम निकट भविष्य में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होंगे।


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