शिक्षित बेरोजगारी की समस्या

 . शिक्षित बेरोजगारी की समस्या


अन्य सम्बन्धित शीर्षक- बेरोजगारी, 

• बेरोजगारी की समस्या और समाधान ● शिक्षितों बेरोजगारों की समस्या एक चुनौती  बेरोजगारी की विकराल समस्या • जनसंख्या वृद्धि और बेरोजगारी • जनसंख्या विस्फोट और बेकारी की समस्या, शिक्षा और रोजगार • बेकारी की समस्या एवं समाधान  ।



"बेरोजगार व्यक्ति को कष्ट तो पहुंचता ही है, साथ ही उसका नैतिक पतन भी होता है; जो साधारण रूप से को प्रस्त कर लेता है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ता ही जाता है। इस प्रकार के असन्तुष्टको का अधिक -अज्ञात समाज संख्या में बेकार होना देश की राजनैतिक स्थिरता के लिए भी हानिकारक और भयंकर है।"


[रूपरेखा

 1) प्रस्तावना, 

2) बेरोजगारी का अर्थ, 

3) बेरोजगारी

4) बेरोजगारी एक अभिशाप,

5) बेरोजगारी के कारण–

(क) जनसंख्या में वृद्धि, 

(ख) दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली 

(ग) कुटीर उद्योगों की उपेक्षा, 

(घ) औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया, 

(ङ) कृषि का पिछड़ापन, एक प्रमुख समस्या, 

(च) कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी, 

6) दूर करने के उपाय-

(क) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण, 

(ख) शिक्षा-प्रणाली में व्यापक परिवर्तन, 

(ग) कुटीर उद्योगों का विकास, 

(घ) औद्योगीकरण, 

(ङ) सहकारी खेती, 

(च) सहायक उद्योगों का विकास, 

(छ) राष्ट्र-निर्माण सम्बन्धी विविध कार्य, 

7) उपसंहार, 

प्रस्तावना-

 क्या आपने कभी उस नवयुवक के चेहरे को देखा है, जो विश्वविद्यालय से अच्छी डिग्री लेकर बाहर आया है और रोजगार की तलाश में भटक रहा है? क्या आपने कभी उस युवक की आँखों में झाँककर देखा है जो बेरोजगारी की आग में अपनी डिग्रियों को जलाकर राख कर देने के लिए विवश है? क्या कभी आपने उस नौजवान की पीड़ा का अनुभव किया है, जो दिन में रोजगार-दफ्तरों के चक्कर लगाता है और रात में देर तक अखबारी विज्ञापनों में अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी की खोज करता है तथा घर में जिसे निकम्मा कहा जाता है और समाज


में आवारा? वस्तुत: यह निराशा की नींद सोता है और आँसुओं के खारेपन को पीकर समाज को अपनी मौन व्या सुनाता है। बेरोजगारी का अर्थ- बेरोजगारी का अभिप्राय उस स्थिति से है, जब कोई योग्य तथा काम करने के लिए


इच्छुक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दरों पर कार्य करने के लिए तैयार हो और उसे काम न मिलता हो। बालक, वृद्ध, रोगी, अक्षम एवं अपंग व्यक्तियों को बेरोजगारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जो व्यक्ति काम करने के इसक नहीं है और परजीवी है, वे बेरोजगारों की श्रेणी में नहीं आते। बेरोजगारी : एक प्रमुख समस्या- भारत की आर्थिक समस्याओं के अन्तर्गत बेरोजगारी एक प्रमुख समस्


है। वस्तुतः यह एक ऐसी बुराई है, जिसके कारण केवल उत्पादक मानव-शक्ति ही नष्ट नहीं होती, वरन देश का भावी


आर्थिक विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। जो श्रमिक अपने कार्य द्वारा देश के आर्थिक विकास में सक्रिय सहयोग है।


सकते थे, वे कार्य के अभाव में बेरोजगार रह जाते हैं। यह स्थिति हमारे आर्थिक विकास में बाधक है।


बेरोजगारी : एक अभिशाप-बेरोजगारी किसी भी देश अथवा समाज के लिए अभिशाप होती है। इससे एक ओर निर्धनता, भुखमरी तथा मानसिक अशान्ति फैलती है तो दूसरी ओर युवकों में आक्रोश तथा अनुशासनहीनता को भी प्रोत्साहन मिलता है। चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध-वृत्ति एवं आत्महत्या आदि समस्याओं के मूल में एक बड़ी सीमा तक बेरोजगारी ही विद्यमान है। बेरोजगारी एक ऐसा भयंकर विष है, जो सम्पूर्ण देश के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन को दूषित कर देता है। अतः उसके कारणों को खोजकर उनका निराकरण अत्यधिक आवश्यक है।


बेरोजगारी के कारण- हमारे देश में बेरोजगारी के अनेक कारण है। इनमें से कुछ प्रमुख कारणों का निम्नलिखित है- उल्लेख


(क) जनसंख्या में वृद्धि - बेरोजगारी का प्रमुख कारण है— जनसंख्या में तीव्रगति से वृद्धि। विगत कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है। हमारे देश की जनसंख्या में प्रति वर्ष लगभग २.५% की वृद्धि हो जाती है जब कि इस दर से बेकार हो रहे व्यक्तियों के लिए हमारे देश में रोजगार की व्यवस्था नहीं है।


(ख) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- भारतीय शिक्षा सैद्धान्तिक अधिक है। यह व्यावहारिकता से शून्य है। इसमें पुस्तकीय ज्ञान पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है: फलतः यहाँ के स्कूल-कॉलेजों से निकलनेवाले छात्र दफ्तर के लिपिक ही बन पाते हैं। वे निजी उद्योग-धन्धे स्थापित करने योग्य नहीं बन पाते हैं।


(ग) कुटीर उद्योगों की उपेक्षा- ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग विरोधी नीति के कारण देश में कुटीर उद्योग-धन्धों का पतन हो गया; फलस्वरूप अनेक कारीगर बेकार हो गए। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भी कुटीर


उद्योगों के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया; अतः बेरोजगारी में निरन्तर वृद्धि होती गई।


(घ) औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया

विगत पंचवर्षीय योजनाओं में देश के औद्योगिक विकास के लिए

प्रशंसनीय कदम उठाए गए हैं, किन्तु समुचित रूप से देश का औद्योगीकरण नहीं किया जा सका है; अतः बेकार

व्यक्तियों के लिए रोजगार नहीं जुटाए जा सके हैं।

(ङ) कृषि का पिछड़ापन -

भारत की लगभग ७२% जनता कृषि पर निर्भर है। कृषि के अत्यन्त पिछड़ी हुई इस दशा में होने के कारण कृषि बेरोजगारी की समस्या व्यापक हो गई है। 

(च) कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी—हमारे देश में कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है। अतः उद्योगों के सफल संचालन के लिए विदेशों से प्रशिक्षित कर्मचारी बुलाने पड़ते हैं। इस कारण से देश के कुशल


एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों के बेकार हो जाने की भी समस्या हो जाती है।


इनके अतिरिक्त मानसून की अनियमितता, भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन, मशीनीकरण के फलस्वरूप होनेवाली श्रमिकों की छंटनी, श्रम की माँग एवं पूर्ति में असन्तुलन, आर्थिक साधनों की कमी आदि से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। देश को बेरोजगारी से उबारने के लिए इनका समुचित समाधान नितान्त आवश्यक है।


बेरोजगारी दूर करने के उपाय-

 बेरोजगारी को दूर करने में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-


(क) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण

जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि बेरोजगारी का मूल कारण है: अत: इस पर नियन्त्रण बहुत आवश्यक है। जनता को परिवार नियोजन का महत्त्व समझाते हुए उसमें छोटे परिवार के प्रति चेतना जाग्रत करनी चाहिए।


(ख) शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन-

शिक्षा को व्यवसायप्रधान बनाकर शारीरिक श्रम को भी उचित महत्त्व दिया जाना चाहिए। 

(ग) कुटीर उद्योगों का विकास

-कुटीर उद्योगों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।


घ) औद्योगीकरण

—देश में व्यापक स्तर पर औद्योगीकरण किया जाना चाहिए। इसके लिए विशाल उद्योगों की अपेक्षा लघुस्तरीय उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। 


(ङ) सहकारी खेती—कृषि के क्षेत्र में अधिकाधिक व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए सहकारी खेती को


प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।


(च) सहायक उद्योगों का विकास

-मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास किया जाना चाहिए; जैसे—कृषि के साथ पशुपालन तथा मुर्गीपालन आदि। सहायक उद्योगों का विकास करके ग्रामीणजनों को बेरोजगारी से मुक्त किया जा सकता है। 


(छ) राष्ट्र-निर्माण सम्बन्धी विविध कार्य

- देश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए राष्ट्र-निर्माण सम्बन्धी


विविध कार्यों का विस्तार किया जाना चाहिए; यथा— सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुल निर्माण,बाध निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि। 

उपसंहार—हमारी सरकार बेरोजगारी उन्मूलन के लिए जागरूक है और इस दिशा में उसने महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं। परिवार नियोजन, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधा, कृषि-भूमि की हदबन्दी, नए-नए उद्योगों की स्थापना, अप्रेण्टिस (प्रशिक्षु) योजना, प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना आदि अनेकानेक कार्य ऐसे हैं, जो बेरोजगारी को दूर करने में एक सीमा तक सहायक सिद्ध हुए हैं। इनको और अधिक विस्तृत एवं प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

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