व्यावसायिक शिक्षा

 व्यावसायिक शिक्षा


अन्य सम्बन्धित शीर्षक शिक्षा और रोजगार, रोजगारपरक शिक्षा।



रूपरेखा

 1) प्रस्तावना,

 2) व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता, 

3) व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य — 

(क) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास, 

(ख) जीवन को तैयारी,

 (ग) ज्ञान का जीवन से सहसम्बन्ध, 

(घ) व्यावसायिक एवं आर्थिक विकास,

(ङ) राष्ट्रीय विकास और व्यावसायिक शिक्षा,

च) शिक्षा का व्यवसायीकरण, 

4) व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन- 

i) पूर्णकालिक नियमित व्यावसायिक शिक्षा, 

ii) अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा, 

(iii) अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा व्यावसायिक शिक्षा, 

(iv) पत्राचार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा, 

5) उपसंहार।


प्रस्तावना - 

अर्थव्यवस्था किसी भी समाज के विकास की संरचना में महत्त्वपूर्ण होती है। समाजरूपी शरीर का मेरुदण्ड उसकी अर्थव्यवस्था को ही समझा जाता है। समाज की अर्थव्यवस्था उसके व्यावसायिक विकास पर निर्भर करती है। जिस समाज में व्यवसाय का विकास नहीं होता, वह सदैव आर्थिक परेशानियों में घिरा रहता है। व्यावसायिक शिक्षा इसी व्यवसाय सम्बन्धी तकनीकी, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्षों के क्रमबद्ध अध्ययन को कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसी व्यवसाय के लिए अनिवार्य तकनीकियों एवं विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित ज्ञान प्रदान किया जाता है।

व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता वैदिककाल से लेकर ब्राह्मण और बौद्धकाल तक धर्म, काम और मोक्ष को ही शिक्षा के प्रमुख अंगों के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी। अंग्रेजों के शासनकाल में भी व्यावसायिक शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। अंग्रेजी सरकार यहाँ औद्योगिक विकास न करके इंग्लैण्ड में स्थापित उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहती थी, जिससे वह भारत से कष्णा माल ले जाकर वहाँ से उत्पादित माल ला सके और यहाँ के बाजारों में उसे ऊंचे मूल्य पर बेच सके। इससे भारत का दुहरा शोषण हो रहा था। ब्रिटिश सरकार भारत को स्वावलम्बी बनाना भी नहीं चाहती थी। उसे भय था कि यदि भारत तकनीकी दृष्टि से सशक्त हो गया तो ब्रिटेन में उत्पादित माल भारत में नहीं बिकेगा और उसे यहाँ से कच्चा माल भी नहीं मिल पाएगा।


व्यावसायिक शिक्षा के अभाव में भारत को पर्याप्त समय तक अन्य देशों के प्राविधिक सहयोग पर ही निर्भर रहना पड़ा। उन्नत देशों से ऋण लेकर भी तकनीकी क्षेत्र में स्वावलम्बी होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं किया जा सका है। दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण राष्ट्र की मुद्रा का पर्याप्त हास होता है। इसीलिए व्यावसायिक शिक्षा का विकास राष्ट्र की उन्नति की प्राथमिक आवश्यकता है। व्यक्ति का सर्वागीण विकास भी तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के विकास द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

उसका शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक विकास पर्याप्त सीमा तक तकनीकी शिक्षा पर ही आश्रित है। व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा, शिक्षा की उपयोगिता और उसके उद्देश्यों को पूरी तरह से स्पष्ट करने में सक्षम है। वास्तव में व्यावसायिक शिक्षा का विकास मानवीय पूर्णता के लिए हुआ है। व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्यों को हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते है-

(क) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास-व्यक्ति के व्यक्तित्व को तभी पूर्ण माना जाता है, जब उसमें जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास करने को क्षमता उत्पन्न हो जाए। यदि व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में पिछड़ जाता है तो उसका व्यक्तित्व पूर्ण नहीं माना जा सकता। व्यावसायिक शिक्षा व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकसित होने का अवसर प्रदान करती है। व्यावसायिक शिक्षा शारीरिक श्रम के माध्यम से निरीक्षण, कल्पना, तथ्य-संकलन, नियमन, स्मरण एवं संश्लेषण-विश्लेषण आदि सभी मानसिक शक्तियों का विकास करते हुए शिक्षार्थी को चिन्तन, मनन, तर्क एवं सत्यापन आदि के अवसर प्रदान करती है, जिससे उसका बौद्धिक विकास होता है। विद्यार्थी में किसी व्यवसाय से सम्बन्धित योग्यता एवं कौशल का विकास होने पर आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त उसमें आत्मनिर्भरता की शक्ति भी पैदा होती है।


(ख) जीवन की तैयारी — व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से युवक भावी जीवन के लिए तैयार होता है। वह अपने तथा अपने परिवार के जीवनयापन के लिए आवश्यक व्यावसायिक योग्यताओं एवं कौशलों को विकसित करने तथा उन्हें प्रयुक्त करने की दृष्टि से सक्षम हो पाता है। आनेवाले जीवन में वह संघर्षो के मध्य पिस न जाए, इसके लिए भी वह व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से ही शक्ति अर्जित करता है।


(ग) ज्ञान का जीवन से सहसम्बन्ध - जो ज्ञान जीवन का अंग नहीं बनता, वह निरर्थक और त्याज्य है। जब ज्ञान जीवन का अंग बन जाता है, तब वह व्यावहारिक रूप धारण कर लेता है। यदि हमने अर्जित ज्ञान को अपने दैनिक जीवन में प्रयुक्त नहीं किया तथा उससे लाभ नहीं उठाया तो हम साक्षर तो कहला सकते हैं, लेकिन शिक्षित नहीं कहे जा सकते। व्यावसायिक शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान जीवन का अंग बन जाता है। वस्तुतः वही ज्ञान जीवन का अंग बनता है, जो स्वानुभवों पर आधारित होता है। व्यावसायिक शिक्षा से प्राप्त ज्ञान स्वानुभवों पर टिका होने के कारण जीवन का अंग बन जाता है।


(घ) व्यावसायिक एवं आर्थिक विकास-शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त कोई व्यक्ति किसी व्यवसाय को अपना सके तथा उत्तम जीवन व्यतीत करने के लिए सुख-सुविधाओं का संचय कर सके, यह सामर्थ्य शिक्षा द्वारा उत्पन्न की जानी चाहिए। स्वावलम्बी बनना और अपने स्तर को उन्नत बनाना प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है।


(ङ) राष्ट्रीय विकास और व्यावसायिक शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा राष्ट्र के उपलब्ध साधनों को विवेकपूर्ण विधि से उपयोग में लाने का दृष्टिकोण भी उत्पन्न करती है। भारत अभी भी खाद्य पदार्थों, उपभोग की वस्तुओं, उद्योग तथा व्यवसाय को उन्नत करने से सम्बन्धित सुविधाओं एवं बेरोजगारी की समस्या का हल निकालने की दृष्टि से आत्मनिर्भर नहीं बन सका है। यदि हमारा देश दैनिक उपयोग में आनेवाली वस्तुओं को स्वयं तैयार कर लेता है तो इससे राष्ट्रीय मुद्रा को बचत होती है तथा देश की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ती है। व्यावसायिक शिक्षा इस दृष्टि से हमें सशक्त बनाती है।

(च) शिक्षा का व्यवसायीकरण देश की स्वतन्त्रता के लगभग 50 वर्षों के बाद भी हमारे देश की शिक्षा-व्यवस्था उसी प्रकार की बनी हुई है, जैसी वह अंग्रेजी शासनकाल में थी आज का शिक्षित युवक बेरोजगारी की समस्या से ग्रस्त है। उसकी शिक्षा न तो उसे और न ही समाज को कोई लाभ पहुँचा रही है। इसका कारण यह है कि अभी तक हमारी शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं किया जा सका है। यदि माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था कर दी जाए तो निश्चित ही बेरोजगारी की समस्या को हल किया जा सकता है। व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन-व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए हम निम्नलिखित उपाय अपना सकते है-


(i) पूर्णकालिक नियमित व्यावसायिक शिक्षा 

(ii) अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा । 

(iii) अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा व्यावसायिक शिक्षा 

(iv) पत्राचार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा।

(i) पूर्णकालिक नियमित व्यावसायिक शिक्षा - पूर्णकालिक नियमित व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन निम्नलिखित स्तरों पर किया जा सकता है-


(अ) निम्न माध्यमिक स्तर पर कक्षा 7 तथा 8 के पश्चात् स्कूल छोड़नेवाले बालकों के लिए निम्नलिखित पाठ्यक्रम को आधार बनाया जा सकता है-


(1) औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में ऐसे पाठ्यक्रम चलाना, जिनमें प्राथमिक शिक्षा प्राप्त छात्र प्रवेश ले सकें। 

(2) औद्योगिक सेवाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा प्राप्त छात्रों को प्रशिक्षण देना। इससे उनकी श्रम सम्बन्धी कुशलता बढ़ेगी और वे निरक्षर श्रमिकों की अपेक्षा अच्छा कार्य कर सकेंगे। 

(3) ऐसा प्रशिक्षण देना कि छात्र कक्षा 8 उत्तीर्ण करने के बाद घर पर ही कोई उद्योग या व्यवसाय चला सकें। गाँवों के कृषि सम्बन्धी व्यवसाय इसके अच्छे उदाहरण हैं।


(4) लड़कियों को गृहविज्ञान के माध्यम से कुछ व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए; जैसे- सिलाई,कढ़ाई, बुनाई आदि का प्रशिक्षण। इनका प्रशिक्षण प्राप्त करके लड़कियों विवाह के बाद भी इन्हें व्यवसाय के रूप में अपना सकती है।


5) स्कूलों में बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाए जाएँ। उन्हें आठवीं कक्षा तक इस प्रकार चलाया जाए कि छात्र-छात्राएं किसी बेसिक शिल्प में कुशलता प्राप्त कर लें। व) उच्च माध्यमिक स्तर पर इस स्तर पर कक्षा 8 और हाईस्कूल - उत्तीर्ण छात्र व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकते हैं। व्यावसायिक शिक्षा दो प्रकार से व्यवस्थित की जा सकती है—


(1) पृथक् व्यावसायिक स्कूलों में प्रशिक्षण देकर।


(2) सामान्य शिक्षा के साथ-साथ कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-


(1) पॉलिटेक्निक स्कूलों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करके।

2) औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के प्रचलित पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षण देकर।

(3) बहुउद्देशीय पाठ्यक्रम के शिल्प या व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाकर । 

(4) जूनियर टेक्निकल हाईस्कूलों में प्रवेश देकर।

5) बहु-उद्देश्यीय पाठ्यक्रम और जूनियर टेक्निकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में समन्वय स्थापित करके ।

(6) सामान्य शिक्षा के साथ किसी शिल्प का प्रशिक्षण देकर।

(7) स्वास्थ्य, वाणिज्य और प्रशासन के उपयुक्त पाठ्यक्रम चलाकर ।

(ii) अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा – कुछ छात्र किन्हीं कारणों से प्राथमिक शिक्षा, कक्षा 8 या हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पढ़ना छोड़ देते हैं और घरेलू व्यवसायों में लग जाते हैं। अपनी जीविका को व्यवस्था में लगे होने के कारण वे नियमित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्तियों के लिए स्थानीय व्यावसायिक विद्यालयों में अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा दी जा सकती है। इस शिक्षा की मान्यता नियमित शिक्षा के समान होनी चाहिए। अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा प्राथमिक माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर समान रूप से प्रदान की जा सकती है। प्रशिक्षणार्थियों को नियमित प्रशिक्षणार्थियों के समान मान्य परीक्षा में बैठाया जा सकता है। 

(iii) अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा व्यावसायिक शिक्षा-किसी स्थान विशेष अथवा देश की आवश्यकताओं के अनुरूप, विभिन्न संस्थानों द्वारा नवीनतम व्यावसायिक पाठ्यक्रमों पर आधारित प्रशिक्षण को समुचित व्यवस्था जानी चाहिए।

 (iv) पत्राचार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा अधिकाधिक लोगों को व्यावसायिक शिक्षा सुलभ कराने को दृष्टि से पत्राचार शिक्षा का विशेष महत्त्व है। वर्तमान समय में देश के अनेक विश्वविद्यालय एवं संस्थान विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्र में पत्राचार शिक्षा की सुविधा प्रदान कर रहे हैं।

उपसंहार — इस प्रकार हम देखते हैं कि औद्योगिक विकास के इस युग में किसी राष्ट्र या उसके नागरिक के विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा की महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है। यद्यपि भारत में व्यावसायिक शिक्षा के इस महत्त्व को समझकर इसके विकास हेतु विगत दो दशक से अधिक ध्यान दिया जा रहा है, तथापि इसका जितना विकास यहाँ होना चाहिए, वह अभी तक नहीं हो सका है। आवश्यकता इस बात की है कि इस सम्बन्ध में जागरूकता उत्पन्न की जाए।



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