ग्रामीण विकास

 ग्रामीण विकास


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भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान किसान 

भारतीय कृषि, ग्रामीण विकास: भारतीय परिप्रेक्ष्य में 

ग्रामोत्थान की नवीन योजनाएँ

 भारत का कृषि के क्षेत्र में विकास व पिछड़ापन।

 

प्रस्तावना, 

. कृषकों की सामाजिक समस्याएँ, 

. आर्थिक समस्याएँ, 

. गाँवो की वर्तमान स्थिति, 

. भारत में कृषि की स्थिति, 

. भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान, 

. गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएँ, 

. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, 

. कृषि अनुसंधान और शिक्षा, 

. बागवानी, 

. फसलों के मौसम, 

. उद्योगों के विकास में कृषि का योगदान, 

. उपसंहार 


प्रस्तावना-


भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में निवास करती है। यह कहना भी सर्वया उचित ही प्रतीत होता है कि ग्राम ही भारत की आत्मा है. लेकिन रोजगार और अन्य सुविधाओं के कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ग्रामीणों के इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को गाँवों के विकास की ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा इससे कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है जिसके कारण खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न हो सकता है। माम भारतीय सभ्यता के प्रतीक है। भोजन एवं अन्य नित्यप्रति की आवश्यकताएँ गाँव ही पूर्ण करते का औद्योगिक स्वरूप भी प्राण कृषकों पर ही निर्भर है। वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार यदि गाँवो का विकास होगा तो देश भी समृद्ध होगा। हैं। भारत

ग्राम ही है।


कृषकों की सामाजिक समस्याएँ—विकास के इस युग में भी गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन तथा परिवहन के साधनों की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी है, जिसके कारण भारतीय किसान को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वह साधनों के अभाव में अपने बच्चों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध भी नहीं कर पा रहा है, जो उसके पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण है। भारतीय किसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही सारे जोवन प्रयास करता रहता है। इसी कारण यह आधुनिक परिवेश से अछूता ही रहता है।


आर्थिक समस्याएँ— गाँवो के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय है। उसकी उपज का

उचित मूल्य उसे नहीं मिल पाता। धन के अभाव में यह अच्छी पैदावार भी नहीं ले पाता, जिसका प्रभाव सम्पूर्ण राष्ट्र के

विकास पर पड़ता है। गाँवों में निर्धनता, भुखमरी और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। कृषकों को कृषि से

सम्बन्धित जानकारी सुगमता से सुलभ नहीं हो पाती। 


गाँवों की वर्तमान स्थिति — गाँवों में पक्की सड़कों का अभाव है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मनोरंजन के साधनों का उपयुक्त प्रबन्ध नहीं है। बेरोजगारी अपने चरम पर है तथा संचार के समुचित साधनों, पेयजल, उपयुक्त निर्देशन एवं परामर्श सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव है।


भारत में कृषि की स्थिति – कृषि क्षेत्र में हमारी श्रमशक्ति का ६४ प्रतिशत हिस्सा आजीविका प्राप्त कर रहा है। और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग २६ प्रतिशत इसी क्षेत्र में मिलता है। देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान लगभग १८ प्रतिशत है। अनाज को प्रति व्यक्ति उपलब्धता सन् २००० ई० में प्रतिदिन ४६७ ग्राम तक पहुंच गई जबकि पाँच दशक की शुरूआत में यह प्रति व्यक्ति ३९५ ग्राम प्रतिदिन थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् निरन्तर कृषि उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन वर्ष २००२ में देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ा, जिसके कारण २००१-०२ ई० के लिए कृषि उत्पादन के लिए लगाए गए सारे अनुमान बेकार हो गए। धान की पूरी फसल नष्ट हो गई, इसके बावजूद भी आज हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है।


भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। पहले इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए अन्नपूर्ति करना असम्भव ही प्रतीत होता था, परन्तु आज हम अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं। इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है। विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, बुआई कटाई के आधुनिक साधनों, कीटनाशक दवाओं तथा सिचाई के कृत्रिम साधनों ने खेती को अत्यन्त सुविधापूर्ण एवं सरल बना दिया है। अन्न को सुरक्षित रखने के लिए भी अनेक नवीन उपकरणों का आविष्कार किया गया है।


गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएं- गाँव के विकास हेतु सरकार के द्वारा नवीन योजनाओं का शुभारम्भ किया जा रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं में गाँवों के विकास को महत्त्व दिया जा रहा है। गाँवों में परिवहन, विद्युत्, सिंचाई के साधन, पेयजल, शिक्षा आदि की व्यवस्था हेतु व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को उन्नत बीजो का प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। आधुनिक कृषि यन्त्र खरीदने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुदान दिए जा रहे हैं। जगह-जगह कृषि अनुसन्धान केन्द्र खोले जा रहे हैं। किसानों के उत्थान के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की गई है, जिसका उद्देश्य कृषि, पशुपालन, कुटीर तथा ग्रामोद्योग को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना है।


राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक — राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना सन् १९८२ ई० को हुई थी। इसका उद्देश्य कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर तथा प्रामोद्योगों, दस्तकारियों और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण उपलब्ध कराना था, ताकि समेकित ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन दिया जा सके और ग्रामीण क्षेत्रों को खुशहाल बनाया जा सके।


कृषि अनुसंधान और शिक्षा कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग की स्थापना कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत सन् १९७३ ई० में की गई थी। यह विभाग कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के क्षेत्र में अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों संचालित करने के लिए उत्तरदायी है। कृषि मंत्रालय के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के प्रमुख संगठन 'भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने कृषि प्रौद्योगिकी के विकास, निवेश सामग्री तथा खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता लाने के लिए प्रमुख वैज्ञानिक जानकारियों को आम लोगों तक पहुंचाने के मामले में प्रमुख भूमिका निभाई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् को गतिविधियाँ मुख्य रूप से आठ विषयों में विभाजित है जैसे—फसल विज्ञान, बागवानो, मृदा कृषि विज्ञान और वानिकी, कृषि इंजीनियरी, पशु विज्ञान, मत्स्यिकी कृषि विस्तार और कृषि शिक्षा।


बागवानी— भारत की जलवायु और मृदा में व्यापक भिन्नता पाई जाती है, जो विविध प्रकार को बागवानी

फसलों: जैसे फलों, सब्जियों, कन्द फसलों, सजावटी पौधे, औषधीय पौधे, मसाले तथा रोपण फसलो; जैसे नारियल,

काजू, सुपारी आदि की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। भारत अब नारियल, सुपारी, काजू, अदरक, हल्दी मि का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।


फसलों के मौसम भारत में मोटेतौर पर तीन फसल होती हैखरीफ थी और जायद की फसल खरीफ के मौसम में मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मका, कपास, तिल, सोयाबीन और मूँगफली की खेती की जाती है। सो की फसल में गेहूं ज्वार, घना, अलसी, तोरिया और सरसों उगाई जाती है। जायद की फसलों में खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, लौकी आदि फसले उगाई जाती है।


उद्योगों के विकास में कृषि का योगदान सन् १९४७ ई० में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत औद्योगिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ। औद्योगिक विकास में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। वस्त्र उद्योग कागज उद्योग, रगड़ उद्योग तथा चीनी उद्योग पूर्णरूपेण कृषि पर हो निर्भर है। कृषि उपज बढ़ाने के लिए समय-समय पर कृषकों को प्रोत्साहित किया तो जाता है, लेकिन उनकी उपज का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता, जिसके कारण किसान वैज्ञानिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग नहीं कर पाते। कृषि के वैज्ञानिक यन्त्रों के अभाव में किसान उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल तैयार नहीं कर पाते, जिसका प्रभाव उद्योग के विकास पर पड़ता है। इसलिए औद्योगिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य मिले, ताकि किसान भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके और वैज्ञानिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि कर सके।


उपसंहार देश की समृद्धि के लिए प्रामोत्थान आवश्यक है। सरकार ने भी मामों के विकास के लिए सार्थक पहल की है। ग्रामीण क्षेत्रों में अब सड़कों, शिक्षा, चिकित्सा, दूरसंचार, लघु उद्योग, विद्युत् तथा परिवहन व्यवस्था का प्रसार किया जा रहा है। कृषकों को उन्नत बीज, खाद तथा आधुनिक कृषि यन्त्र खरीदने के लिए ऋण के रूप में रुपये व अनुदान दिए जाते हैं तथा प्रत्येक क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है। आशा है कि निकट भविष्य में कृषक आत्मनिर्भर होकर भारत को समृद्ध करने में पूर्ण योगदान देंगे।




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