हमारी वन सम्पदा

 हमारी वन सम्पदा


 अन्य सम्बन्धित शीर्षक- वनों का महत्व वन महोत्सव की उपादेयता, वनों से लाभ, वन संरक्षण का महत्त्व मनुष्य और वृक्ष पारस्परिक सम्बन्ध





"पेड़ मनुष्य के लगभग सबसे अधिक विश्वस्त मित्र है और जो देश अपने भविष्य को संवारना और सुधारना चाहता है उसे चाहिए कि वह अपने वनों का अच्छी तरह ध्यान रखे।" 



रूपरेखा 


1) प्रस्तावना,

2) भारतीय अर्थव्यवस्था में वनों का आर्थिक महत्व 

(अ) प्रत्यक्ष लाभ-

(i) लकड़ी की प्राप्ति 

(ii) उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति 

(iii) लघु उद्योगों की स्थापना, 

(iv) व्यक्तियों के लिए रोजगार 

(v) पशुओं को चारा, 

(vi) सरकार को राजस्व की प्राप्ति, 

(vii) विदेशी मुद्रा की प्राप्ति, 

(viii) आयुर्वेदिक तथा अन्य जड़ी-बूटियां 

(च) अप्रत्यक्ष लाभ 

(1) जलवायु पर नियन्त्रण 

(ii) पर्यावरण सन्तुलन, 

(iii) वर्षा में सहायक,

(iv) रेगिस्तान के प्रसार पर रोक, 

(v) बाढ़ नियन्त्रण में सहायक, 

(vi) भूमि कटाव रोकने में सहायक। 

(vii) पानी के स्तर में वृद्धि, 


3) वनों के विकास की दिशा में किए गए सरकारी प्रयास, 

4) उपसंहार ।

 प्रस्तावना

-वन एक ऐसा प्राकृतिक गोदाम है, जहाँ से हमें भोजन बनाने के लिए ईंधन मिलता है, फर्नीचर के लिए लकड़ी मिलती है और कागज के लिए लुगदी। वन प्राकृतिक ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। वनों में उगनेवाले वृक्ष हमारे जीवन के मुख्य अंग है; क्योंकि ये कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का सेवन करके हमें प्राणदायी ऑक्सीजन देते हैं, अन्यथा हमारा जीवन दूभर हो जाए। वन हमारी भूमि को ढकते हैं और उसके पोषक तत्वों की रक्षा करते हैं। किसी भी देश के आर्थिक विकास व उसकी समृद्धि में वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आर्थिक विकास के लिए


वन केवल कच्चे माल की पूर्ति ही नहीं करते, वरन् बाद-नियन्त्रण करके भूमि के कटाव को भी रोकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में वनों का आर्थिक महत्व - पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “एक उगता हुआ वृक्ष राष्ट्र की प्रगति का जीवित प्रतीक है।" भारतोय अर्थव्यवस्था में वनों का अत्यन्त महत्त्व है। इनसे न केवल जलाने के लिए लकड़ी मिलती है, बरन् उद्योगों के लिए कच्चे पदार्थ, रोगों के उपचार के लिए अनेक औषधियाँ, पशुओं के लिए चारा तथा सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होती है। वन देश की जलवायु को सन्तुलित बनाए रखते हैं, वर्षा को नियन्त्रित करते हैं, भूमि कटाव को कम करते हैं, रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं तथा देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। वनों के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए जे० एस० कॉलिन्स का कथन है, "वृक्ष पर्वतों को चामे रखते हैं, तूफानी वर्षा को दबाते हैं तथा नदियों को अनुशासन में रखते हैं। वे झरनों को बनाए रखते हैं तथा पक्षियों का पोषण भी करते हैं।"


वनों से प्राप्त प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभों का विवरण इस प्रकार है- 

(अ) प्रत्यक्ष लाभ-वनो से प्राप्त होनेवाले प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित रूपों में जाने जा सकते हैं-


(i) लकड़ी की प्राप्ति-वनों से हमें अनेक प्रकार की लकड़ियाँ प्राप्त होती है, जो मुख्यतः ईंधन के रूप में जलाने के काम आती है। भारत की लकड़ी और गोबर मिलकर देश के कुल शक्ति-संसाधनों को ३४६ प्रतिशत शक्ति उत्पादित करते हैं। भारतीय वनों से लगभग ५५० प्रकार की ऐसी लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं, जो व्यापारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें साल, सागौन, चीड़, देवदार, शीशम, आबनूस तथा चन्दन आदि की लकड़ियाँ मुख्य हैं; जिनका उपयोग फर्नीचर, रेल के डिब्बे, स्लीपर, जहाज, माचिस आदि बनाने तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है।


(ii) उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति - वनों से हमें लकड़ी के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण सहायक उपज भी प्राप्त होती है; जिनका उपयोग देश के अनेक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इन सहायक उपजों में लाख, चपड़ा, गोंद, शहद, कत्था, छाले, याँस व बेंत, जड़ो-यूटियों एवं जानवरों के सोग इत्यादि मुख्य हैं;


जिनका उपयोग भारत में विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इनमें कागज उद्योग, दियासलाई उद्योग, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर उद्योग, तेल उद्योग (चन्दन, तारपीन व केवड़ा आदि) तथा औषधि उद्योग मुख्य है।

 (iii) लघु उद्योगों की स्थापना – वनों से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग करके भारत में अनेक लघु तथा कुटीर उद्योगों की स्थापना हुई है। इनमें टोकरियाँ व बेत बनाना, रस्सी घटना, बीड़ी बाँधना तथा गोंद व शहद एकत्र करना इत्यादि मुख्य हैं।


(iv) व्यक्तियों के लिए रोजगार वनों पर आधारित उद्योगों तथा वन विकास से सम्बन्धित अनेक निगमों एवं विभागों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग ७८ करोड़ व्यक्तियों की


जीविका वनों पर आश्रित है।


(v) पशुओं को धारा–भारत की कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न पशुओं को वनों से पर्याप्त चारा प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त वन विविध पशु-पक्षियों का पालन-पोषण करने की दृष्टि से भी उपयोगी हैं।


(vi) सरकार को राजस्व की प्राप्ति-सरकार को वनों का उपयोग करने से राजस्व तथा नीलामी रॉयल्टी के रूप में प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों के राजस्व की प्राप्ति होती है।


(vii) विदेशी मुद्रा की प्राप्ति-वन सरकार को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित कराने में बहुत सहायता प्रदान करते हैं। विभिन्न वन्य-पदार्थों जैसे—लाख, तारपीन का तेल, चन्दन का तेल एवं उससे बनी कलात्मक वस्तुओं आदि के निर्यात द्वारा सरकार को प्रतिवर्ष लगभग 50 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।


(viii) आयुर्वेदिक तथा अन्य जड़ी-बूटियाँ - भारतीय वनों में कुछ ऐसी वनस्पतियाँ तथा जड़ी-बूटियाँ पाई जाती है, जिनसे विभिन्न प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं। इन औषधियों के द्वारा अनेक रोगों का उपचार कियाजाता है।

 (ब) अप्रत्यक्ष लाभ-उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त वनों से अनेक परोक्ष लाभ भी है; जो भारत की कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं; यथा- (i) जलवायु पर नियन्त्रण-वन वातावरण के तापक्रम, नमी तथा वायु प्रवाह को नियन्त्रित करके जलवायु में सन्तुलन बनाए रखते हैं। ये आँधी और तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं तथा गर्म व तेज हवाओं को रोककर देश की जलवायु को समशीतोष्ण बनाए रखते हैं। 

(ii) पर्यावरण सन्तुलन - वनों में उत्पन्न होनेवाले वृक्ष वातावरण से दूषित वायु (कार्बन-डाइ-ऑक्साइड)


को अपने पोषण हेतु ग्रहण करते हैं, जबकि अन्य जीव-जन्तु ऑक्सीजन ग्रहण करके दूषित वायु निकालते हैं। इस


प्रकार पेड़-पौधे वायु प्रदूषण को दूर करके पर्यावरण में सन्तुलन बनाए रखते हैं।


(iii) वर्षा में सहायक—वन वर्षा होने में सहायता करते हैं, अतः वनों को वर्षा का संचालक कहा जाता है।

वनों से वर्षा होती है और वर्षा से बन बढ़ते हैं। इस प्रकार मानसून पर भारतीय कृषि की निर्भरता की दृष्टि से वन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।


(iv) रेगिस्तान के प्रसार पर रोक—

वन रेगिस्तान के प्रसार को रोकते हैं। वे तेज आँधियों को रोककर, वर्षा को आकर्षित करके तथा मिट्टी के कणों को अपनी जड़ों से बांधकर रेगिस्तानों के प्रसार को नियन्त्रित करते हैं। 

(v) बाढ़ नियन्त्रण में सहायक बनों से बाढ़ नियन्त्रण में भी सहायता मिलती है। भूमि का कटाव कम होने से नदियों और तालाबों में मिट्टी का भराव नहीं होता और बाढ़ की सम्भावना कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त वन वर्षा के जल को स्पंज की तरह सोख लेते है, जिससे बाढ़ का भय कम रहता है। 

(vi) भूमि कटाव रोकने में सहायक- वनों के कारण वर्षा गति मन्द हो जाती है अतः भूमि कटाव भी कम होता है। वनों के वृक्ष वर्षा के अतिरिक्त जल को सोखकर तथा नदियों के प्रवाह को नियन्त्रित करके बाढ़ के प्रकोप को कम करते हैं और भूमि के कटाव को रोकते हैं। इस प्रकार ये (वन) भूमि को ऊबड़-खाबड़ होने से रोकते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी नहीं आने देते।

 (vii) पानी के स्तर में वृद्धि-वन वर्षा के जल को सोखकर अपनी जड़ों द्वारा भू-गर्भ में उपस्थित पानी के


स्तर को बढ़ाते रहते हैं, जिससे कुओं आदि में पानी का स्तर नहीं घट पाता है। वनों से प्राप्त होने वाले उपर्युक्त लाभों को दृष्टि में रखते हुए ही वनों को 'हरा सोना' तथा 'देश को राष्ट्रीय निधि' माना जाता है। हमे चाहिए कि हम इस हरे सोने को नष्ट न करें।


वनों के विकास की दिशा में किए गए सरकारी प्रयास देश के आर्थिक विकास में वनों के अत्यधिक महत्त्व को समझते हुए भारत सरकार ने इनके विकास के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए है। सन् 1956 ई० में अधिक वृक्ष लगाओ आन्दोलन' आरम्भ किया गया, जिसे 'वन महोत्सव' का नाम दिया गया। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष 2 जुलाई से 7 जुलाई तक वन महोत्सव मनाया जाता है। सन् 1956 ई० में सरकार ने


केन्द्रीय वन आयोग' की स्थापना की। इसका कार्य बनों से सम्बन्धित आँकड़े और सूचनाएँ एकत्र करना तथा वनों के विकास में लगी हुई संस्थाओं के कार्य में समन्वय करना है। वनों के विकास के लिए देहरादून (उत्तरांचल) में 'वन अनुसन्धान संस्थान' स्थापित किया गया है। यह संस्थान वनो के सम्बन्ध में अनुसन्धान करता है और वन अधिकारियों को प्रशिक्षित करता है।


वनों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकने के लिए विभिन्न राज्यों में 'वन निगम' बनाए गए हैं। इस प्रकार वनों के


विकास के लिए सरकार द्वारा निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं।


उपसंहार——

प्राकृतिक वनस्पति अथवा वन प्राचीनकाल से ही मनुष्य के सहयोगी रहे है। आदिकाल का मानव

जब जंगली अवस्था में रहता था तो वन ही उसका घर था, पेड़ों की छाल व पत्ते ही उसके वस्त्र थे तथा पेड़ों के फल,कन्द-मूल एवं वन के पशुओं के शिकार से ही वह अपना पेट भरता था। वे ही उस समय उसकी प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करते थे। इस प्रकार वन तथा मनुष्य का सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीन है।



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