महिला आरक्षण

 . महिला आरक्षण


अन्य सम्बन्धित शीर्षक भारत में महिला आरक्षण, महिला आरक्षण की उपयोगिता ।



रूपरेखा–


1. प्रस्तावना, 

२. महिला आरक्षण की आवश्यकता

3. महिला आरक्षण में बाधाएँ, 

4. चुनाव आयोग की भूमिका, 

5. आरक्षण से नारी की स्थिति में परिवर्तन, 

6. महिला आरक्षण का उद्देश्य, 

7.  उपसंहार।


प्रस्तावना 

               -महिला-आरक्षण का अभिप्राय नारी को आत्मनिर्भर बनाना है। सामाजिक व्यवस्था को सुसंगठित करने में नारी का विशेष महत्त्व है। आदिमकाल से आज तक विकास पथ पर पुरुष का साथ देकर, उसकी जीवन-यात्रा को सरल बनाकर, उसके अभिशापों को स्वयं झेलकर और अपने वरदानों से जीवन में अक्षय शक्ति भरकर मानवी ने जिस व्यक्तित्व चेतना और हृदय का विकास किया है, उसी का पर्याय नारी है। संसार में सृष्टि की रचना गृहस्थ धर्म के पालन आदि विभिन्न दृष्टियों से पुरुषों के साथ ही नारी का भी विशिष्ट महत्त्व है। हमारे शास्त्रों में तो नारी को देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है और कहा गया है कि 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:' अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।


प्राचीनकाल में नारियों को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे, परिवार में उनका स्थान प्रतिष्ठापूर्ण था। घर से लेकर युद्ध क्षेत्र तक नारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन समय परिवर्तन के साथ-साथ स्त्रियों की स्थिति में भी परिवर्तन होता गया और उनके क्षेत्र को केवल चहारदीवारी तक सीमित कर दिया गया, किन्तु आज नारी को उनके संरक्षण के लिए विशेष कानून बनाकर तथा संसद और विधान सभाओं में आरक्षण देकर सशक्त बनाया जा सकता है।"


महिला आरक्षण की आवश्यकता

                                                - भारतीय संविधान में कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है, जिसका लाभ पुरुष वर्ग ही उठा रहा है। नारी को उसका विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है। लोकसभा, राज्यसभा या राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी दस फीसदी से भी कम है। इस विषय में अभी तक एकमत नहीं हो पाए हैं कि महिलाओं को विधायिका में ३३ फीसदी आरक्षण मिले। महिलाओं को लेकर राजनैतिक दल कितने संवेदनशील है कि सन् १९५२ ई० से लेकर अब तक लोकसभा में महिलाओं की संख्या कभी भी ५० को पार नहीं कर पाई। राजनीति ही नहीं, सामाजिक स्तर पर भी महिलाओं की स्थिति कोई बेहतर नहीं है।


महिला आरक्षण में बाधाएँ 

                                      — संसद का सत्र शुरू होते ही विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए तैंतीस प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा गर्मा जाता है, लेकिन विभिन्न दलों में आम राय नहीं बन पाती। पहले यह सुझाव सामने आया कि कानून के जरिए विधानमण्डलों और संसद के लिए सोटों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने के बजाय पार्टियों को इस बात के लिए बाध्य किया जाए कि वे अपने कुल प्रत्याशियों में तैतीस प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए सुनिश्चित करें। इसके लिए जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। फिर भी कुछ राजनैतिक दल किसी भी रूप में महिला आरक्षण को पारित न होने देने की चेष्टा कर रहे हैं। सम्भवतः इन दलों के नेताओं को लगता है कि महिलाओं को तैतीस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से उनकी राजनीति प्रभावित हो सकती है, लेकिन इन वर्षों में इस मुद्दे पर चली बहस ने एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी है कि विधान मण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण सम्बन्धी व्यवस्था को कुछ समय के लिए तो टाला जा सकता है, लेकिन इससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता।


चुनाव आयोग की भूमिका 

                                   महिला आरक्षण के इस महत्त्वपूर्ण विषय में चुनाव आयोग की भी विशेष भूमिका है। चुनाव आयोग ने यह सुझाव दिया है कि सभी राजनैतिक पार्टियाँ अपने कुल प्रत्याशियों में तैतीस प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करे, इसके लिए कानूनी व्यवस्था की जाए। लगता है कि सभी राजनैतिक पार्टियां इस पर सहमत हो जाएँगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस व्यवस्था से जातीय और वर्गों की महिलाओं का प्रतिनिधित्व विधायिका में सुनिश्चित हो सकेगा। राजनैतिक पार्टियाँ अपने-अपने सामाजिक आधार से महिलाओं की उम्मीदवारी तय कर सकेगी; इस तरह की व्यवस्था से यह सुविधा उन्हें अवश्य मिल जाएगी। हो सकता है कि विधानमण्डलों के स्वरूप में इससे परिवर्तन भी दिखाई दे, लेकिन संसद में महिलाओं का प्रतिशत अधिक हो सकेगा


इस पर संदेह हो है; क्योंकि इस समय भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के उभार का दौर है। चुनाव आयोग में यह खुलासा नहीं किया गया है कि जिन पार्टियों ने पिछले लोकसभा के चुनाव में जिन राज्यों से सबसे ज्यादा सीटें हासिल की हों, उन्हें उस राज्य में एक निश्चित प्रतिशत महिला प्रत्याशी बनाना अनिवार्य होगा। अब आवश्यकता इस बात की है कि चुनाव आयोग को कुछ सटीक सुझाव सरकार के समक्ष रखने होंगे।


आरक्षण से नारी की स्थिति में परिवर्तन

                                                    -आरक्षण के माध्यम से नारी चहारदीवार से बाहर निकलकर सामाजिक और आर्थिक परिवेश में स्थान लेगी। अपनी योग्यता का प्रदर्शन करने का भी उसे अवसर मिलेगा, जिसके परिणामस्वरूप समाज में उसे सम्मान मिलेगा, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होने पर उसे पुरुष पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी। वह भी पुरुष की तरह स्वतन्त्र जीवनयापन कर सकेगी तथा पुरुष उसका शोषण भी नहीं कर सकेगा। इस प्रकार आरक्षण के माध्यम से नारी पुरुष के अत्याचारों से मुक्त होकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते हुए आदर्श जीवन व्यतीत कर सकेगी।


महिला आरक्षण का उद्देश्य

                                    – महिला आरक्षण का उद्देश्य महज तैंतीस प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को सुनिश्चित करना मात्र नहीं है, बल्कि संसद और विधानमण्डलों में उनका तैंतीस प्रतिशत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है, फिर इस तरह के सुझाव में यह भी सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है कि एक निश्चित प्रतिशत तक पिछड़े और कमजोर वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व हो सकेगा। यद्यपि दलों के लिए तैंतीस प्रतिशत महिला उम्मीदवार खड़ा करने की कानूनी व्यवस्था करने के सुझाव को अमली जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसका परिणाम इस रूप में सामने नहीं आना चाहिए कि राजनैतिक दल अब महज महिला आरक्षण की बहस को एक विराम भर देना चाहता है। महिला आरक्षण के चाहे जिस रूप पर सहमति बने, उसमें यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विधायिका की सभी संस्थाओं में तैंतीस प्रतिशत महिलाओं का प्रतिनिधित्व होगा और उसमें पिछड़ी एवं दलित महिलाओं का नेतृत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।


उपसंहार — 


देश की आजादी के साथ-साथ नारी में चेतना का संचार हुआ और वह अपने अधिकारों के प्रति सजग हुई है। आज देश की जागरूक और सक्रिय महिलाओं ने सारे राजनैतिक दलों को यह आभास करा दिया है कि उनका भी अपना एक वोट बैंक है और शायद इसीलिए पहली बार ज्यादातर प्रमुख राजनैतिक दल महिला आरक्षण के माध्यम से महिला हितों की बात कर रहे हैं और महिला आरक्षण में आने वाली बाधाओं का निराकरण करने में भी प्रयासरत हैं। इस प्रकार महिला आरक्षण को इस व्यवस्था को नारी के विकास की दृष्टि से देखा जा रहा है और पूरी सम्भावना है कि नारी का भविष्य उज्ज्वल है

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